Sadhana Shahi

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ऐ राही (नज़्म) प्रतियोगिता हेतु-29-Apr-2024

ऐ राही!(नज़्म)

ऐ राही! सुन मेरी बात कभी न दुख से घबराना, संँभल- संँभल के पग तू धरना कंटक देख न डर जाना।

यदि विकास है तुझको करना है पूरण की रख ले अभिलाषा, समन्वय का भाव गहे जाति, धर्म ना कर जाना।

कर्म-कांड संकीर्ण भावना हमको पीछे करती है, मानव मात्र को कर सम्मानित सबके ऊर में घर जाना।

स्वाभिमान को रखकर ज़िंदा सत्कर्म को करते जा, सत्ता को तुम धारण करके एकाधिकार ना कर जाना।

धरती अंबर सबका एक है सबका एक ही मालिक है, मानवता का पहन के गहना ऐ राही तू तर रहना।

साधना शाही, वाराणसी

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2 Comments

Gunjan Kamal

30-Apr-2024 07:59 AM

बहुत खूब

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जी सुंदरतम अभिव्यक्ति।

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